चेतना, नेतृत्व एवं संगठन:
“द्वितीय त्रिदिवसीय आवासीय संस्कारशाला प्रशिक्षण”
हिन्दू इकोसिस्टम के द्वितीय तीन दिवसीय संस्कार प्रशिक्षण लखनऊ में संपन्न हुआ। 21-24 अक्तूबर तक होने वाले इस आवासीय चेतना, नेतृत्व एवं संगठन,
संस्कारशाला के प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के अलग-अलग हिस्सों से कुल 25 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
आए हुए सभी प्रतिभागियों को गुरूकुल की नियमावली आधारित पद्धति की अनुभूति के साथ एक अलग ही जीवन शैली को अनुभव करने का अवसर मिला। शामिल हुए सभी प्रतिभागियों से चर्चा करने के लिए अलग-अलग विभिन्न विषयों पर गुणी गुरूजनों से भी मिलने एवं उनसे सीखने तथा विभिन्न विषयों पर चर्चा करने का अवसर भी प्राप्त हुआ।
महत्वपूर्ण जानकारों के अनुसार हमारे देश के वास्तविक इतिहास एवं उसकी विशेषताएँ, सनातन धर्म, भारतीय सभ्यता, वैदिक काल, पुराण, उपनिषदों, रामायण, भगवद्गीता, के बारे में जानने का अवसर प्राप्त हुआ।
इसके अलावा सम्मानित अनुभवी आचार्यों के द्वारा यह भी बताया गया कि हर व्यक्ति में नेतृत्व की क्षमता होती हैं बशर्ते कि वो अपने कार्य को किस प्रकार से करने की क्षमता रखता है एवं किसी भी बड़े कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि एक संगठन की आवश्यकता होती है। जो व्यक्ति केवल स्वयं की आवश्यकता लिए सोच कर कार्य करता है वो नेतृत्व नहीं कर बल्कि समाजिक हितों और कल्याणकारी कार्य के प्रति जिससे राष्ट्र को लाभ मिलेगा वही व्यक्ति नेतृत्व करने वाले होते हैं।
वहीं दूसरी ओर संगठन के बिना किसी भी बड़े कार्य को बड़े पैमाने पर नहीं किया जा सकता है अतः संगठन निर्माण की प्रक्रिया हर बड़े कार्य को करने के लिए ज़रूरी होता है एवं ये एकता की दृष्टि से भी अति आवश्यक है। संगठन ही शक्ति है, और देश सेवा के लिए संगठित होकर कार्य करना अति आवश्यक है।
और इस समय देश के युवाओं का शिक्षित और संगठित होना अति आवश्यक है।
इस समय देश के अधिकांश युवा इन सभी विषयों के ज्ञान से वस्तुतः वंचित रह जाते है। और हमारे देश एवं धर्म के बारे समाज में फैल रही ग़लत धारणा को बहुत जल्दी से चुन लेते हैं या बिना पूरी जानकारी के एक पक्षीय निर्णय ले लेते है। जो समाज में भेदभाव एवं वैमनस्य को बढ़ावा देता है और अपने धर्म के प्रति उसका लगाव भी घटने लगता है। इस समय यदि इस प्रकार की संस्कारशाला का निरंतर आयोजन किया जाए तो ख़ासकर देश के युवाओं को अपने धर्म के प्रति जानने एवं इससे जुड़े रहने में बहुत ही महत्वपूर्ण कदम होगा।
श्री ज्ञान पाण्डेय जी द्वारा आयोजित संस्कारशाला की रूपरेखा एवं समयबद्ध नियमानुसार किए जाने वाले प्रत्येक कार्यक्रम का आधार वास्तव में किसी गुरूकुल की छवि से कम नही प्रतीत हो रहा था। प्रातः काल में 5 बजे उठने से लेकर रात्रि के विश्राम तक योग, भक्ति, शिक्षा, अध्ययन, सामाजिक चर्चा, राष्ट्रीय चर्चा, तथा भोजन आदि सभी चीजों को बिल्कुल उचित एवं अनुकूल रूप से गुरूकुल पद्धति पर व्यवस्थित किया गया था।
इस संस्कारशाला के संचालक, आयोजक एवं गुरूकुल के मार्गदर्शक गुरु श्री ज्ञान पाण्डेय जी की लिखित शब्दों में जितनी प्रशंसा एवं सराहना की जाए वो कम है। एक गुरू की भूमिका से लेकर गुरूकुल की पद्धति पर आधारित सभी कार्य को उन्होंने बहुत ही अद्भुत एवं सुनियोजित तरीक़े से डिज़ाइन किया है। उनके द्वारा आयोजित इस संस्कारशाला में शामिल होना एक अलग ही अनुभूति प्रतीत हुई। वास्तव में आए सभी प्रतिभागियों को यही प्रतीत हो रहा था कि भारत की मूल शिक्षा पद्धति गुरूकुल में दोबारा शामिल होने का पुनः अवसर प्राप्त हुआ। जो वर्षों पहले एक साजिश के अन्तर्गत इस पर प्रहार कर बंद करवा दिया गया था, वो अब पुनः खुल गया हो।
ऐसा अनुभव हुआ कि ये वो स्थान है जहां एक समय ज्ञान की गंगा बहती प्रतीत होती है, तो दूसरी ओर सनातन संस्कृति का बोध करने का अवसर प्राप्त हो रहा था। जहां एक ओर प्रत्येक प्रतिभागियों में नेतृत्व को निखारने की क्षमता को प्रोत्साहित किया जा रहा था तो दूसरी ओर उन्हें संगठन निर्माण की प्रक्रिया तथा समाज और देश हित में उसकी महत्वता को समझाया जा रहा था। जहां एक ओर गुरू से शिक्षा पाने का मौका मिला, तो दूसरी ओर धर्म का आधार समझने का अवसर मिला। जहां एक ओर महासागर सा अपना सनातन धर्म को जानने एवं उसका बोध करने का अवसर मिला तो वही दूसरी ओर अपने सनातन परम्परा, शुद्ध आचरण, समय का बोध, आचरण, व्यक्तित्व व्यवहार, अनुशासन, उत्तम चरित्र, अंतःकरण चतुष्टय, हिन्दू धर्म, व्यक्ति में नेतृत्व निर्माण, संगठन की शक्ति, को जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो कि समाज एवं राष्ट्र हित में सर्वत्र गुणवत्ता स्वरूप है तथा यह सब जानना अपने आप में एक अलग ही अनुभूति रही। वास्तव में यही वो उचित स्थान है जहां जाकर अपने धर्म को जानने एवं उससे जुड़े रहने के लिए जिज्ञासा मन में और अधिक उठने लगी।
यदि ऐसी व्यवस्था भारत के कोने-कोने में यदि पहुँच जाए तो निश्चित रूप में हमारे देश की सनातन परम्परा को नाच तो कोई भी नहीं चोट पहुँचा सकता है और ना ही कोई धूमिल कर सकता है। सनातन संस्कृति निरंतर चला आ रहा है, सनातन आज भी जीवित है और कल भी पूर्ण रूप से रहेगा।